बचपन
साची खंडेपरकर 10 B
समय था जब,
सब प्रश्नों के उत्तर थे आसान।
दुःख का नाम न पता था,
न था कोई नुकसान।
भय की भावना पता नहीं थी,
मैं थी महान वीरांगना।
सब दुनिया मेरे हाथों में थी,
मेरी मासूमियत थी मेरा खज़ाना।
बड़े बड़े थे मेरे सपने,
भविष्य लगता था अपार।
मुक्ति थी आशंकाओं से,
सब बोझों से आज़ाद।
बढ़ती आयु के साथ,
बढ़ गया कर्तव्य का भार।
मुश्किलों का मुँह देखा,
देखा मैंने संसार।
परंतु हँसी खुशी में,
याद आता है बचपन।
और जाग जाता है फिर से,
आशाओं से भरा यह मन।
नई शुरुआत
समायरा गुप्ता 10B
बीते समय को , बीते साल को,
पीछे भूल कर चल पड़ो ,
नए साल की नई शुरुआत ,
आगे बढ़ते चलो।
कल की असफलता और नाकामयाबी ,
कल में ही छोड़ चलो ,
नए सवेरे में, नए अवसरों पर ,
नए जोश भरकर धरो।
आज कामयाबी नहीं हासिल पर ,
नित नए में है अभिमुख ,
आरंभ है नए दिन की नई शुरुआत ,
आज में न हो लुप्त बढ़ चलो ।
आज बोया कल पाया ,
फिर कभी जीत हमारी ,
आज गिरे तब कल जागेंगे,
जीतेंगे हम दुनिया सारी ।
विगत है कल, इसमें डूब कर त्याग न करना ,
जिंदगी , जोश , आज़ादी ,
आज और कल हमेशा होगा ,
नई शुरुआत हमारी।
आज पढ़ेगी, कल बढ़ेगी
रीतिका कलंत्री 10A
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में शिक्षा का बहुत महत्त्व होता है। सफलता की पहली सीढ़ी शिक्षा है। शिक्षा वह दीपक है जो हमें अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश तक लेकर जाता है।
शिक्षा हर मनुष्य का अधिकार होता है। परंतु आज भी हमारे देश में बहुत सारी लड़कियाँ हैं जिन्हें अपना यह अधिकार प्राप्त नहीं हो रहा है। कुछ लोगों का यह मानना है कि लड़कियों की जगह रसोईघर में है न कि विद्यालय में। लोग अपनी पुरानी सोच से आगे बढ़ना ही नहीं चाहते। यदि हम इसी मानसिकता पर अटके रहेंगे तो देश का विकास कैसे हो पाएगा?
हमारे देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाओं से बहुत लोग बदले हैं परंतु अभी भी दिल्ली दूर है। जब तक हर एक लड़की को शिक्षा नहीं मिलती तब तक देश का विकास नहीं हो सकता है। सरोजिनी नायडू, इंदिरा गाँधी और निर्मला सीतारमन जैसी औरतों ने यह साबित कर दिया है कि यदि लड़कियों को पढ़ने का मौका मिले तो वे पूरे देश के निर्माण में अपना योगदान दे सकती हैं।
जिस स्त्री की पूजा हम दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में करते हैं उस स्त्री को यदि ज्ञान का दीपक और कलम की ताकत थमा दी जाए तो वह पूरी दुनिया को बदल सकती है।
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